नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
एक समय माता पार्वती जी भगवान शिव से अपने पूर्व जन्म में उपजे संशय के निवारण के लिए विनय भाव से पूछती हैं-
‘हे प्रभो! जो परमार्थतत्व (ब्रह्म) के ज्ञाता और वक्ता मुनि हैं, वे श्री रामचन्द्रजी को अनादि ब्रह्म कहते हैं और शेष, सरस्वती, वेद और पुराण सभी श्री रघुनाथजी का गुण गाते हैं। और आप भी दिन-रात आदरपूर्वक राम-राम जपा करते हैं-ये राम वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं या अजन्मे, निर्गुण और अगोचर कोई और राम हैं ?’
‘कृपया आप वेदों के सिद्धांत के अनुसार श्री रघुनाथजी का निर्मल यश वर्णन कीजिए कि किन कारणों से निर्गुण ब्रह्म ने सगुण रूप धारण किया ?’
तब प्रसन्नता से भगवान शिव ने रघुनाथ जी का दिव्य स्वरूप हृदय में धारण कर पुलकित मन से उनके पावन चरित्र का वर्णन करते हुए कहा- ‘सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है- मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा कहते हैं। जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है। श्री रामचन्द्रजी तो व्यापक ब्रह्म, परमानन्दस्वरूप, परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं। यह बात सारा जगत जानता है। जिनका वेद और पंडित इस प्रकार वर्णन करते हैं और मुनि जिनका ध्यान धरते हैं, वही दशरथ नंदन, भक्तों के हितकारी, अयोध्या के स्वामी भगवान श्री रामचन्द्रजी हैं।’
‘मैं उन्हीं श्री रामचन्द्रजी के बाल रूप की वंदना करता हूं, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरने वाले और श्री दशरथ जी के आंगन में खेलने वाले बालरूप श्री रामचन्द्रजी मुझ पर कृपा करें।’
वेद कहते हैं कि जिस दिन श्री राम चंद्र जी का जन्म होता है, उस दिन समस्त तीर्थ श्री अयोध्याजी में चले आते हैं। राम चरित सत कोटि अपारा। श्रुति सारदा न बरनै पारा॥
भगवान शिव पार्वती जी से कहते हैं- ‘श्री राम के चरित्र शत कोटि अथवा अपार हैं। श्रुति और शारदा भी उनका वर्णन नहीं कर सकते।’
जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भांति-भांति के दिव्य शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं। वे असुरों को मारकर देवताओं को स्थापित करते हैं, अपने श्वास रूप वेदों की मर्यादा की रक्षा करते हैं और जगत में अपना निर्मल यश फैलाते हैं। श्री रामचन्द्रजी के अवतार का यही कारण है। कृपासागर भगवान भक्तों के हित के लिए शरीर धारण करते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने त्याग और मर्यादा की पराकाष्ठा के महान धर्माचरण का उदाहरण प्रस्तुत किया। रामायण तथा पुराणों में वर्णित भगवान विष्णु जी के अवतार श्री राम का मुख्य उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिए सर्वोत्कृष्ट मार्गदर्शन देना था।
भगवान की इस पावन लीला में सहभागी बनने के लिए भगवान शंकर स्वयं रूद्रावतार में श्री हनुमान जी के रूप में पधारे।
धन्य है भरतजी की श्री राम भक्ति, जिन्होंने अपने बड़े भाई प्रभु श्री राम के वनवास काल में उनकी चरण पादुकाओं को सिंहासन पर विराजित कराया, फिर चरण पादुकाओं की आज्ञा पाकर धर्म की धुरी धारण करने में धीर भरत जी ने नन्दिग्राम में पर्णकुटी बनाकर चौदह वर्ष उसी में निवास किया।
इसी प्रकार धन्य है वह सन्त समाज, गिद्धराज जटायु, माता शबरी जो सनातन ब्रह्म प्रभु श्री राम जी का सान्निध्य प्राप्त कर सायुज्य मुक्ति को प्राप्त हुए। धन्य है अयोध्या नगरी, जहां मुक्ति के धाम प्रभु श्रीराम प्रकट हुए और भारत भूमि पवित्र देव भूमि बनी।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्॥
‘जिनके दाईं ओर लक्ष्मण जी, बाईं ओर जानकी जी तथा सामने हनुमान जी विराजमान हैं, मैं उन्हीं रघुनाथ जी की वंदना करता हूं।’
भगवान श्री राम जी की ‘राम रक्षा स्तोत्र’ में वन्दना करते हुए बुध कौशिक ऋषि कहते हैं कि-
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूं, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पत्ति प्रदान करने वाले हैं।